रविवार, 27 सितंबर 2009

साहित्य और संगीत

हमें हिन्दी साहित्य में संगीत के महत्व को समझना ही होगा साहित्य को यदि संगीत से जोड़ा जाए तो यह संगम कितना मनोहारी और अद्भुत होगा। इसका उदाहरण हमें १८ सितंबर को हिंदी अकादमी द्वारा कबीर के पदों की उड़िया नृत्य प्रस्तुती को देखने पर मिला। नर्तकी ने जिस भाव-भंगिमा के साथ कबीर के पदों को दर्शकों के समक्ष रख दिया उससे तो यही लगता था कि कबीर के पद सिर्फ सुनने,समझने और रटने माञ के लिए नहीं है उन्हें देखा भी जा सकता है। वो शांत शाम भुलाए से भी नही भूलेगी क्योंकि मेरे लिए ये एक अद्भुत अनुभव था एकदम शांत वातावरण में घुंघरुओ की आवाज़ मन को लुभा रही थी।उसी समय मन में एक सवाल उठा कि जब संगीत और साहित्य का इतना गहरा रिश्ता है तो क्यों नही इसे भी हमारे बी. ए. के पाठ्यक्रम में शामिल किया . यदि ध्यान से देखा जाए तो साहित्य के साथ संगीत अपने आप ही जुड़ा़ हुआ है। चाहे आदिकाल हो,भक्तिकाल हो या फिर आधुनिक काल। हर युग,हर समय मे संगीत की महत्ता को देखा-आंका जा सकता है। साहित्य ही क्या अन्य क्षेञों में भी इसकी महत्ता को देखा जा सकता है। बीरबल और अकबर के बारे में तो आप जानते ही हैं राणा कुम्भा के संगीत के योगदान को क्या हम भूल सकते हैं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. भक्तिकाल का सारा साहित्य संगीतमय है... आधुनिककाल के लगभग सभी प्रारंभिक कवि गेय है और निराला तक यह प्रक्रिया जारी रही है...

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