बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

२४ जनवरी को बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न संगठनो और संस्थानों में लड़कियों के व्यक्तित्व और अस्तित्व को लेकर अलग -अलग तरह की चर्चाएँ की जाती हैं कि हमें लड़कियों को लड़कों के बराबर समझना चाहिए उनके स्वास्थ्य का पूरा द्यान रखना चाहिए लड़की और लड़के में कोई अंतर नहीं समझना चाहिए उन्हें शिक्षित करना चाहिए उनके साथ किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए उन्हें आगे बढ़ने में उनका सहयोग करना चाहिए आदि आदि ये बातेँ सुनने में तो बहुत अच्छी लगती हैं पर दुख की बात ये है कि ये बातेँ सिर्फ गोष्ठियों तक ही समित रह जाती हैं और व्यवहार में बहुत ही कम दिखाई देती हैं । इतने सालों बाद भी हम अपने समाज की सोंच नहीं बदल पायें हैं आज भी हमें पहले सिर्फ पोता और बेटा ही चाहिए। खुद भी हम एक औरत होने के बावजूद भी बेटे की कामना करते हैं फिर चाहे वो किसी दबाव में ही की जाए या फिर खुद की इच्छा से । आज भी हम केवल बेटे को ही अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहते है । हम बेटे के नाम पर लड़के को तो पूरी छूट देने को तैयार है पर लड़की को उसके काम के लिए भी कहीं जाने नहीं देना चाहते । मेरे मन में इन बातों को लेकर कई बार सवाल उठते हैं कि क्या लड़की को अपने जीवन जीने का कोई हक नहीं है? क्या वह नहीं चाहती कि उसका भी करिअर बने ? क्या उसके सपने -सपने नहीं होते ?लड़की और लड़के के नाम पर क्यों लड़की के सारे हक छीन लिए जाते है ? मै मानती हूँ कि आज समय भी ख़राब है और इसलिए माँ बाप लड़कियों के प्रति चिंतित भी हैं पर क्या ये चिंता उनके सपनों या उनके केरिअर को ख़राब कर के ही पूरी होगी अगर मोहोल ख़राब है तो आप उसे बदलिए ना अपनी बच्ची के सपनों के ऊपर आप मोहोल को क्यों हावी होने देते हैं ? एक बार अपने आप को उनकी जगह रख कर देखिये आप खुद उनकी तकलीफ को अनुभव कर सकेंगे ।