गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

'मंडी'





कुछ दिनों पहले श्याम बेनेगल निर्देशित ' मंडी ' फिल्म देखी । मंडी की पूरी कहानी कोठे और उसमे रहने वाली लड़कियों के इर्द-गिर्द घूमती है जिन्हें अक्सर हमारे समाज में 'अच्छी दृष्टि ' से नहीं देखा जाता और जिसके लिए कुछ ख़ास तरह के नाम हमने ही उन्हें दिए हैं जिसमे रेड लाईट एरिया विशेष रूप से प्रचलित है। फिल्म देखने के बाद ऐसा लगा कि समाज में इनसे कितनी खुस्की ली जाती है पर क्या कोई ऐसा भी है जो इनके बारे में सोंच सके? ये बात अलग है की इन्हें सहारा देने की बजाय दर -दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर कर दिया जाता है । सवाल ये उठता है कि क्या इस एरिया या इस पेशे में ये सब अपनी इच्छा से यहाँ आती है या किसी मजबूरी के वशीभूत होकर वे सब अपने आप को यहाँ धकेलने के लिए मजबूर हो जाती है ? यहाँ तक की केवल मर्द ही नहीं बल्कि औरतें भी कई आपको ऐसी मिल जाएंगी जो इन पर कमेन्ट करती मिलेंगी या इस पेशे के कारण इनसे नफरत करेंगी । मै मानती हूँ कि (अपनी मजबूरी या पेशा कुछ भी कह लीजिये ) कई बार ये दूसरों के घरों को भी बर्बाद कर देती है पर सवाल ये उठता है कि क्या ये औरतें उन पुरुषों के घर जबरदस्ती जा कर अपने पेशे को अंजाम देती हैं? फिर क्यों गन्दी निगाहों से केवल उन्हें ही देखा जाता है फिल्म में बाई (शबाना आज़मी) कहती है कि " समाज की गंदगी को हम पचा देते हैं उसकी कोई कीमत नहीं " यहाँ तक की उनके पास जाने वाले भी केवल उनके शरीर की कीमत अदा कर यह मान बैठते हैं कि उन्होंने इसकी कीमत चुकाई है। उनकी भी कोई इच्छा हो सकती है , उनके भी कुछ सपने, कोई चाहत होगी ये कोई नहीं समझता। फिल्म में बाई कहती है " हमारा हुनर हमारी कला सिर्फ रूपे में तोलेंगे " वैसे तो लोग इनकी कुछ कीमत आंकते ही नहीं आकते भी हैं तो केवल पैसे से। उन्हें लगता है कि एक औरत के शरीर को रोंदने के लिए वे उसे उसके पैसे तो देते ही हैं फिर चाहे इस रोंदने में उसके शरीर के साथ- साथ उसकी feelings को भी क्यों न रोंदा जा रहा हो । दूसरों के जीवन के अकेले पन को दूर करने वालों के जीवन में खुद कितना अकेलापन होता है ये कोई नहीं समझना चाहता। फिल्म का एक डायलोग है "हम है इस वास्ते समाज में इंसानी रिश्ते कायम हैं रोजमर्रा की ज़िन्दगी के अकेलेपन को हम दूर करते हैं बेघर बे सहारा ओरतों को पनाह देते हैं "
फिल्म में दो बातों ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया-

पहला ये कि फिल्म का एक दूसरा केरेक्टर जीनत जो अभी इस पेशे में नहीं आयी हैं (या कह लीजिये कि आधी आयी है क्योंकि उसका काम केवल गीत- संगीत गाना ही है )वह अपने ही भाई से प्रेम करने लगती है क्योंकि उसे नहीं पता कि उसका बाप और उसके प्रेमि का बाप एक ही है।

दूसरी फूलमणि जो पहले जब इस कोठे पर रहना ही नहीं चाहती थी और इससे बचने के लिए वह जहर तक खा लेती है और नारी निकेतन भेज दी जाती है अंत में वह नारी निकेतन से भागकर फिर दुबारा उसी कोठे पर भागती हुई आ रही है।

ये दोनों बातें क्या हमें कुछ सोचने पर मजबूर नहीं करतीं ?