मंगलवार, 8 सितंबर 2009

गोरी का सावन

देखो सावन आ गया रिमझिम बरसात की फुहार झरने लगी l
चारो तरफ हरियाली छाई , बंद कलियाँ भी अब खिलने लगीं l

इस भीगे हुए मौसम को देख, अब तो गोरी भी मचलने लगी l
काले-काले बादलों को देख, वो तो भीगकर नाचने लगी l

पिया का पैगाम पढ़ वो तो झूमने लगी l
सुर्ख हो गए लाल गाल उसके पैगाम पढ़
दुःख भरी दुनिया को देख
वो तो अब मुस्काने लगीl

सखियाँ भी छेड़े उसे पिया का नाम लेकर
बार-बार सुन नाम पिया का वो तो शर्माने लगीl

इस बरसात ने कर दिया मुश्किल जीना अब तो
चूडियाँ भी उसको जगाने लगीं l

हाय निगोडी ये पायल भी अब चुप न रह सकीl
उसकी झनक-झनक से जान गए सब
कि वो भी छिप-छिप के प्यार करने लगी l

1 टिप्पणी:

  1. प्रतिमा जी,
    आपने अमित जी के उल्टा तीर पर जो प्रतिक्रिया दी है, वो अच्छे लेख की अच्छी तारीफ है. उस पेज पर मैने तो एक कताअ ज़रूर लिखा है
    दरअसल, मेरा नज़रिया कुछ यूं है_____
    उनका जो काम है वो अहले-सियासत जानें,
    अपना पैग़ाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे
    हां आपके ब्लाग पर स्वार्थ और दूसरी रचनाएं पढी, अच्छी लगी.
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
    लिंक
    http://shahidmirza.blogspot.com/

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