शनिवार, 8 मई 2010

प्रति 54 मिनट


कल अपने पीएच.डी. से जुड़े शोध कार्य के सिलसिले के लिए एक स्कूल जाना पड़ा। मैंने कुछ students और teachers से बात की और अब दूसरे teacher का इंटरव्यू ही लेने जा रही थी की मुझसे कहा गया कि आप अपना काम कल कर लेना आज हमारी urgent meeting है । मुझे ऐसा सुनकर कुछ अजीब लगा क्योंकि कल ही तो मै स्कूल की प्रिंसिपल से बात करके गयी थी और उन्होंने भी कहा था की आप जब चाहे जितनी देर चाहे स्कूल में आ सकती हैं और अपना काम पूरा कर सकती हैं और इसमें हम आपका पूरा सहयोग देंगे। फिर अचानक से मुझे कल आने को क्यों कहा गया ? मै class से बाहर आई तो मुझे कुछ गड़बड़ लगी । मैंने एक teacher से पूछा की क्या हुआ आपकी कौन सी meeting है तब उन्होंने कहा की पता नहीं कल तक तो किसी meeting के बारे में नहीं बताया गया था । सारी teachers अपनी -अपनी class से बाहर निकल कर office में जाने लगी तब मैंने जिस class के बाहर भीड़ लगी थी उस class की एक लड़की से पूछा कि क्या हुआ स्कूल में क्या बात हो गयी तब उसने बताया कि हमारी class की एक लड़की का रेप हो गया है मै सुनकर पहले तो सकपका गयी फिर पूछा की कैसे ? तो उसने बताया कि उसके (लड़की के ) पड़ोस में रहने वाला एक आदमी स्कूल आया था उसने कहा की चल मै भी घर जा रहा हूँ तुझे छोड़ दूंगा वो उसे भाई कहती थी इसलिए वो उसके साथ चली गयी । पर उसने कही रास्ते में ले जाकर उसका रेप कर दिया । उसकी ये बात सुनकर मुझे अखबारों में आने वाली बलात्कार की घटनाएं याद आने लगी। आज रिश्तों की अहमियत ही नहीं रह गयी है सोतेला बाप बेटी से बलात्कार करता है चचेरा ,ममेरा ,मौसेरा भाई अपनी ही बहनों के साथ बलात्कार करते हैं यहाँ तक कि पुलिस वाले तक ....... आखिर विश्वास किया जाए तो किस पर ?

हाल ही में मैंने एक उपन्नयास " 54 मिनट " (महाशेवता देवी ) पढ़ा जिसमे यही समस्या थी । उसमे वकील उषा पटेल बताती हैं कि " इस देश में प्रति 54 मिनट में एक स्त्री का बलात्कार होता है , दो घन्टे में दहेज़ के लिए एक वधु की ह्त्या होती है , प्रति 54 मिनट में एक स्त्री का अपहरण होता है , प्रति 26 मिनट में पुरुषों द्वारा तैयार की गयी न्याय व्यवस्था के रहते हुए किस स्त्री को न्याय मिलेगा ? ''

बलात्कार एक ऐसी सज़ा है जो लड़की को बिना किसी जुर्म के पूरी ज़िन्दगी भुगतनी पड़ती है । उसका जीवन नरक हो जाता है ।यहाँ तक की कभी कभी तो वह आत्महत्या भी कर लेती है । वह सहज नहीं हो पाती। ( और होना भी चाहे तो समाज उसे होने नहीं देता) लोग उसके चरित्र पर उंगलियाँ उठाते हैं, ताने कसते है, यहाँ तक की उसके सबसे करीब उसके अपने उसका साथ तक नहीं देते । इससे सिर्फ लड़की का जीवन ही बर्बाद नहीं होता बल्कि उसका घर भी बर्बाद हो जाता है। प्रति 54 मिनट की नायिका (जिसका बलात्कार होता है) का पिता कहता है "यह मर्डर नहीं तो और क्या है ?मेरा जीवन , इज्ज़त सबका खून हो गया । मेरी बीवी ....मेरी बीवी यह हत्या तो है ही । मेरी बेटी कभी स्वाभाविक जीवन जी सकेगी ? इतने जीवन नष्ट हो गए । यह हत्या नहीं तो और क्या है ?''

मुझे
लगता है कि हमें अपनी हिफाज़त के लिए सिर्फ पुलिस या क़ानून तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि हमें खुद भी इसके लिए कुछ करना चाहिए जैसे आजकल तो फ्री कैंप भी लगाए जाते हैं जिसमे लड़कियों को अपनी हिफाज़त करने के तरीके सिखाए जाते है हमें उमे जाना चाहिए । दूसरी बात ये है कि हमारे माता -पिता को भी अपनी सोंच बदलनी चाहिए और हमें इन कैम्पों में जाने का मौका देना चाहिए और हमारा पूरा सहयोग करना चाहिए। तीसरी बात ये है कि न्यायालयों को भी इसमें पाए जाने वाले दोषी को कड़ी सजा देनी चाहिए जिससे की लोगों में इस तरह की हरकत करने से पहले परिणाम का डर हो ।

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