गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

हिंदी को ताक़त की भाषा बनाने से हमें परहेज़ करना चाहिए

पुस्तक मेले में 'हिंदी क्या है?' विषय पर चर्चा-परिचर्चा की गयी। पंकज पचौरी ( n.d.t.v.) ने इस परिचर्चा का संचालन किया। सुधीश पचौरी , अनामिका , अशोक चक्रधर,मीराकांत,ओम थानवी , मुकेश गर्ग,आदि इस चर्चा के वक्ता थे । विषय के अनुसार हिंदी भाषा को लेकर काफी चर्चा हुई । पंकज पचौरी ने सवाल पूछते हुए चर्चा की शुरुआत की। उनका सवाल था कि 18करोड़ लोग हिंदी बोलते है , हिंदी फिल्मो से हमें इतना मुनाफ़ा ११ हज़ार करोड़ रूपये होता है अभी ३ idiots को ३०० करोड़ का मुनाफ़ा हुआ है internet की दुनिया भी अब हिंदीमय हो रही है तब भी क्या कारण है कि हिंदी को वह जगह नहीं मिल पा रही है जो उसे मिलनी चाहिए? प्रो. सुधीश पचौरी ने कहा कि अगर हिंदी को आगे बढ़ाना है तो उसे उपभोग की भाषा बनाना होगा केवल हिंदी को पढ़ लेने या भाषा तक सीमित रखने से हिंदी का विकास आज संभव नहीं है अब तक हिंदी उपयोग की भाषा थी अब हिंदी उपभोग की भाषा बनती जा रही है । डॉ. मुकेश गर्ग ने कहा कि हिंदी के आगे ना बढ़ पाने का कारण हमारी शिक्षा पद्धति है क्योंकि जब हम अपने बच्चो को हिंदी पढाएंगे ही नहीं तो वे उसे सीखेंगे कहाँ से ? ओम थानवी ने आज की हिंदी को देखते हुए चिंता व्यक्त की उनका मानना था कि आज हिंदी का जो (बिगड़ा ) रूप चल रहा है उसके जिम्मेदार कुछ हद तक तो मीडिया भी है उनका मानना है कि जो शब्द हम आज टी.वी . या रेडियो पर सुनते है उसने हिंदी को बिगाड़ दिया है आज मै रेडियो पर ' बाप' शब्द सुनता हूँ तो हिंदी का ये रूप हिंदी को बिगाड़ रहा है अशोक चक्रधर ने कहा कि हिंदी का भला कोई ऊपर से नहीं कर सकता हिंदी का भला होगा तो वह नीचे से होगा उनका कहना था कि हिंदी में भी अब आप इन्टरनेट , कम्प्यूटर पर काम कर सकते है, हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा बनती जा रही है हिंदी आज 130 देशो में पढाई जाती है। मीराकान्त ने कहा की भाषा तो बहता नीर है ये जब बहती है तो सबको अपने साथ ले जाती है उन्होंने कहा की भाषा को आजकल बाज़ार तय करता है । इस तरह यह चर्चा चलती रही और आगे भी इसी तरह चलती भी रहेंगी पर इन परिचर्चाओं को करने का फायदा तभी है जब हम इनमे शामिल हों, कुछ मुद्दे उठा सके और अपनी भाषा के लिए कुछ कर सकें। पर जो बात मुझे सबसे जानदार लगी वो ये कि भाषा का विकास आप डंडे के जोर पर नहीं बल्कि उसे सहभागिता, ज्ञान और जैसाकि सुधीश पचौरी ने कहा कि उसे उपभोग की भाषा बनाकर ही किया जा सकता है, ताक़त की भाषा बनाकर नहीं, ताक़त से हम राज ठाकरे के मानुषों को ही उत्पन्न करेंगे इसलिए हिंदी को ताक़त की भाषा बनाने से हमें परहेज़ करना चाहिए।

5 टिप्‍पणियां:

  1. वहाँ हुई चर्चा की जानकारी देने के लिए आभार।
    घुघूती बासूती

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  2. हिंदी को क्लिष्टता से बचा कर जितना आसान शब्दों में जन-जन तक पहुंचाया जाएगा, हिंदी उतनी ही लोकप्रिय होगी...लेकिन श्रेष्ठबोध लिए गंगा-जमुनी हिंदी (दूसरी भाषा के शब्दों को आत्मसात करती हिंदी) की आलोचना किए जाना ही हिंदी के विस्तार में अवरोध खड़े करता है...

    जय हिंद...

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  3. 'हिन्दी को ताकत की भाषा...." - इससे बढ़िया बकवास हो ही नहीं सकती। कहाँ हिन्दी ने 'ताकत' दिखायी या दिखाने की कोशिश की? ऐसी बात किसी के दिमाग में आ भी कैसे गयी? क्या महाराष्ट्र में, असम में, तमिलनाडु में हिन्दी ने ताकत दिखायी?

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  4. अनुनाद जी आपका धन्यवाद
    वास्तव में हमें हिंदी को प्रेम की भाषा बनाना है ना की इसे डंडे की चोट पर दूसरों पर थोपना है ।

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