शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

होली के रंग "ब्रज कला केंद्र" के संग



कल पहली बार "ब्रज कला केंद्र" जाने का मौका मिला। वहाँ हर साल होली के उपलक्ष्य में कार्यक्रम किया जाता है। 1962 में 'ब्रज कला केंद्र ' की स्थापना हुई थी और तब से लेकर आज तक यहाँ ब्रज की कला और संस्कृति को आगे बढ़ाने का कार्य किया जाता है । इस बार भी "हो हो लाल होरी है " के नाम से वहाँ होली उत्सव मनाया गया । अन्दर घुसते ही देखा की शहनाई की मोहक धुन बज रही थीं। ये धुनें ब्रज के वे लोक गीत थे जो लोक धुनों के माध्यम से हमारे सामने प्रस्तुत किये जा रहे थे। कार्यक्रम प्रारंभ हुआ सबसे पहले खान- पान किया गया। गुलाबजामुन ,टिक्की, दहीभल्ले, पूरी- सब्जी, गोलगप्पे, ठंडाई सभी में मथुरा का स्वाद था। इनमे से कुछ चीज़ें तो मथुरा से ही बनी- बनाई आई थीं जबकि कुछ चीज़े बनाने के लिए सामान मथुरा से मंगाया गया और वे वही पर ही तैयार की गयीं । खान- पान से निपटने के बाद कार्यक्रम को आगे बढाया गया। शुरुआत कृष्ण वंदना से हुई। तत्पश्चात एक गीत मथुरा से आई हुई कुछ लड़कियों द्वारा प्रस्तुत किया गया उसके बाद मथुरा से ही आई हुई team ने कृष्ण के 9 अवतारों की नाट्य प्रस्तुति की नाट्य प्रस्तुति में कृष्ण के एक -एक करके सभी अवतार गायन -दृश्य माध्यम से दिखाए गए और अंत में रास- लीला के सुन्दर दृश्य प्रस्तुत किये गए। रास लीला देखने लायक तथा मन को हरने वाली थी। रासलीला देख कर सभी का मन इतना तन्मय हुआ कि कुछ लोग तो स्टेज पर जाकर कृष्णमय ही हो गए ब्रज भाषा के प्रयोग ने कार्यक्रम की शोभा और अधिक बढा दी।

4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लगा जान कर..आपका आभार!

    आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.

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  2. इक रंग में रंगी सेना , अच्छी नहीं लगती
    खूनी न हों अंदाज , इस बार होली में !

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  3. होली की हार्दिक शुभकामनाए इस आशा के साथ की ये होली सभी के जीवन में
    ख़ुशियों के ढेर सरे रंग भर दे ....!!

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