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बस में बैठी ही थी कि अचानक से वो मेरे पास आकर बैठ गया, मुझसे सुना कुछ नही ( उसकी बातों से ऐसा लगा भी की वो सुनना नही बल्कि सुनाना ही चाहता है ) बस ख़ुद ही बोलता गयाl पहले तो मै कुछ घबरा- सी गयी पर उसकी बात को ध्यान से सुना तो लगा की वो अपनी बात किसी को सुनाना चाहता हो वो बिना मेरी ओर देखे बस टिकट , आटा , खर्चा , आदि कि बातों में ख़ुद ही उलझा रहाl जब मैंने एक बार उसकी तरफ़ देखा तो उसने भी अपनी बात और ज्यादा विश्व्वास के साथ कहनी शुरू कर दी उसके कपड़े और बोलने के ढंग को देखने से लगा की वो कोई छोटा सा काम करने वाला आदमी है जिसकी monthly incom बहुत ही कम है मेरे stand ( art feculty ) तक वो मुझसे सिर्फ़ अपनी हालत और हालात के बारे में ही कहता गयाl मुझे उसकी बातों को सुनना अच्छा लग रहा था (क्योकि दूसरे के बारे में हम कम ही सोच पाते हैं और बोल पाते हैं )इसलिए मै उसकी बात बस सुनती ही चली जा रही थी और उसके देखने पर बस गर्दन ही हिला रही थी इतने में मुझे सरकार की पानी महंगा करने की बात याद आई और मन में जाने कितने ही सवाल उठने लगे की इस महंगाई को क्या सब लोग झेलने की हिम्मत रखते है? सरकार को अगर चीज़ों के दाम ज्यादा ही करने थे तो सभी के दाम एक साथ महंगे करने जरुरी थी ? या चीज़ों के दाम धीरे- धीरे कर के भी बढाए जा सकते थे lइस समाज / देश में सारे लोगों की आर्थिक स्थिति क्या एक सी ही है ? जो लोग महीने के सिर्फ़ और सिर्फ़ 5000 रूपये कमाते है क्या वो ये बस का किराया ,ये महँगी साग- सब्जी ,ये पानी का बिल झेल पाएगा जबकि इसी पैसो में उसे घर का खर्च भी चलाना है ,अपने बच्चे को स्कूल भी भेजना है और समाज के सारे रीती -रिवाजों को भी निभाना है क्या इस तरह से आत्महत्याएँ , depression, tension आदि बिमारियाँ नही बढेंगी ? इन बातों के बारे में सोचना भी उतना ही जरुरी है जितना की महंगाई को बढ़ानाl सरकार को इस बारे में भी कुछ सोंचना चाहिए l
मुझे उसकी बातों को सुनना अच्छा लग रहा था (क्योकि दूसरे के बारे में हम कम ही सोच पाते हैं'
जवाब देंहटाएंठीक कहा है हम कब दूसरो के बारे मे सोचते हैं. पर यह तो हर एक की व्यथा है
बहुत सुन्दर