दिन की दुपहरी में ,
बिलखता वह नवजात
शायद इंतज़ार में,
जो हटा यह उमस,
देगा छाँव
उसका यह रूदन
यह पीडा,
कोई नही पहचानता
और,
वह काया
जिसने पुण्य पाया था
जा चुकी थी
पर..............
अब भी है देखा करती
पंक सम छाया को
मैंने महसूस किया है
हाँ, मैंने अनुभव किया हैl
बढिया!!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा भाव!!
जवाब देंहटाएंयह एक कवि की ही दृष्टि हो सकती है ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भाव है और बखूबी अभिव्यक्त किया है
जवाब देंहटाएंbahut achcha likha...
जवाब देंहटाएंthanks for sharing
do sujhaav hai apke liye
work verification hata de to comments post kare me suvidha rahti hai :)
blog ka background color black Nahi hoNa chahiye...
aNkho me chuhbta hai