
काफी दिनों से तबीयत ठीक सी नहीं चल रही थी, आस- पास के डॉ. से दवाई लेने के बावजूद भी आराम नही पड़ रहा थाl तब मै अपने घर से थोड़ी दूरी पर एक दूसरे डॉ. से दवाई लेने चली गयीl मेरा नंबर पाँचवा था तो मेरे पास उन मरीजों को देखने के अलावा और कोई काम भी नहीं था धीरे - धीरे तीसरा नंबर आया वो आदमी अपनी २५ -३० बरस की लड़की की दवाई लेने आया था देखने में दुबला- पतला सा था और कपड़े भी मैले से ही पहने हुए थे उसकी लड़की काफी कमज़ोर सी और उसे देख कर ऐसा लगता था की मानो शरीर का सारा खून खत्म ही हो गया हैl दवाई लेने के बाद वो आदमी अपनी बेटी को लेकर घर जाने लगा उसने लड़की को सीढियों से आराम से उतारा फ़िर अपने कंधे पर उसे बिठाकर ऐसे ही अपने घर ले जाने लगा क्योकि वो ख़ुद भी इतना कमज़ोर था कि ........और शायद इसीलिए भी कुछ लोंगो ने उसे देख कर कहा कि ''बाबा तुम ऐसे कैसे इसे ले जाओगे किसी रिक्शे वाले को बुला लो'' तब उसने कहा कि ''बुला तो लूँ पर मेरे पास उसे देने को पैसे नहीं हैं जो पैसे थे उससे इसकी दवाई ले चुका हूँ'' उसके ऐसा कहने पर किसी ने भी आगे कुछ नहीं कहा बस सब उस बूढे को देखते ही रहे और शायद कुछ सोंचते रहे ,उन सोंचने वालों में से एक मै भी थी, मै उसकी help करना चाहती थी पर कर ना सकी ,उससे कुछ पूछना चाहती थी पर पूछ भी न सकी और घर आकर अपने आपको अपराधी सा समझने लगी पर फ़िर लगा कि इस बात के लिए क्या सच में ही मै दोषी हूँ या आज की परिस्थितियाँ ही ऐसी बन गयी हैं कि आज चाहते हुए भी कोई किसी पर विश्वास ही नहीं कर पाता ,हम चाह कर भी किसी की help नहीं कर पाते किसी के लिए कुछ कर नहीं पाते आज जहाँ भी देखो ( बस में, सड़कों पर , शैक्षिक संस्थानों आदि आदि ) के आस- पास कोई न कोई ऐसा खड़ा हुआ मिल ही जाता है जो झूठ बोल- बोल कर लोगो के पैसे ऐंठना चाहता है और कभी -कभी तो ये लोग ग़लत हरकतों पर भी उतर आते हैं शायद ये ही ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से एक दूसरे पर लोगो का भरोसा कम होता जा रहा है
tum bilkul theek keh rahi ho.
जवाब देंहटाएंtheek kaha aapne
जवाब देंहटाएंkaBhi kaBhi ham chah ke hi kisi ki help nahi kar pate