बुधवार, 19 मई 2010

उसने ऐसा क्यों किया ?



मेरे घर से थोड़ी दूरी पर एक आदमी रहता था । वह ऑटो चलाता था, सुना है की वह बहुत दिलदार आदमी था । अब वह आदमी नहीं है । उसके चार बच्चे हैं जिनमे सबसे बड़ी लड़की 20 साल और सबसे छोटी केवल पांच साल की है। एक अपने घर के आलावा वह अपने बच्चों के लिए कुछ और छोड़ कर नहीं गया बल्कि 3 लाख रूपये का कर्ज अपने मासूम बच्चों पर और डाल गया है। सुनने में आया है कि उसने खूब शराब पी राखी थी , उसका किसी के साथ झगडा हो गया था तब किसी ने उसे जान से मार कर यमुना नदी में फेंक दिया। अब उसके घर में कोई कमाने वाला नहीं है एक लड़की शादी के लायक हो चुकी है तो ऊपर से 3 लाख रुपये कर्जा भी है लोग उसके घर जाते हैं और उसे सांतवना दे कर वापस आजाते हैं लेकिन वह क्या करे? कैसे अपना घर चलाये ये किसी को भी समझ नहीं आता । वह औरत बार- बार रो- रो कर एक ही सवाल करती है कि अब मै इन बच्चों का क्या करूँ ? इन्हें कैसे पालूं ? उसका तो घर ही उजड गया है । ये सब बातें सुनकर मुझे औरत कि बेबसी को देख कर बड़ा अफसोंस हुआ । आदमी क्यों औरत की बात नहीं सुनता ? क्यों शराब पीकर वह अपने घर को बर्बाद कर देता है? क्यों वह औरत को इस तरह कमज़ोर बना देता है? काश की वह आदमी शराब नहीं पीता और उसका परिवार इस तरह ना बिखर पाता । जिसे जाना था वो तो चला गया पर अपने पीछे इतने सवाल, इतनी जिंदगियां लाचार तरीके से जीने के लिए छोड़ गया है।

मंगलवार, 18 मई 2010

देह भाषा भी मूलतः भाषा ही है l




हम जब कभी भाषा की बात करते हैं तो क्या कभी देह भाषा के बारे में भी सोंचते हैं ? अगर हम linguistic में देखे तो वहाँ भाषा को विभिन्न मुखाव्यवों द्वारा उच्चरित भाषा ही कहा जाता है और अगर आप लोगों से पूछे तो वे कहेंगे कि भाई साहब भाषा तो वही है जो मुँह से बोली जाती है और बहुत से बड़े विद्वानों ने भी भाषा के बारे में जो खोज किए हैं वो भी भाषा कि सरंचना के आधार पर ही किए हैं या फिर उसे समाज के साथ जोड़ कर ही देखा है (सस्यूर , ब्लूम फ़ील्ड , चोमस्की ,फ़र्ग्युसन ,लेबाव ,रविन्द्र नाथ श्रीवास्तव ,भोलानाथ तिवारी ) पर उन्होंने कही भी भाषा को देह के साथ जोड़ कर नहीं देखा जबकि अगर ध्यान से देखा जाए तो हमारी भाषा की शुरुआत ही संकेतों और देह भाषा ही से हुई है पहले समय में जब हमारे पास भाषा नही थी तब हम संकेतो, इशारों,शरीर के विभिन्न अंगों , चिन्हों के माध्यम से ही अपनी बात दूसरों तक पहुचाते थे पर धीरे- धीरे, जैसे- जैसे भाषा का विकास होता गया वैसे- वैसे हम सिर्फ़ मुँह से बोलने वाली भाषा तक ही सीमित रह गए और यहाँ तक की सारी research वगैरह भी बाद में इसी पर सीमित हो गयी और हम ने अपनी भाषा का विकास जहाँ से शुरू किया था हम उसे भूल ही गए पर अगर हम गौर करे तो हम कम से कम अपनी आधी बातें तो संकेतों ,इशारो ,चिन्हों आदि से ही कहते हैं जैसे मुझे नही पता के लिए कंधे उचकाना, उंगली मुँह पर रखने का अर्थ है चुप रहना ,हाथ को घूमा के पूछने का अर्थ है क्या हुआ , ताली बजाने का अर्थ है किसी काम का अच्छा करने पर उसकी तारीफ़ करना ,किसी का हाथ छूना अब देखिये हाथ को छूने के भी , अर्थ निकलते है जैसे किसी माँ का अपने बेटे को छूने में ममता झलकती है ,किसी प्रेमिका द्वारा अपने प्रेमी को छूने से प्यार का पता चलता है इसी तरह किसी लड़के का किसी लड़की को आँख मारने या सीटी बजाने का अर्थ है की वह किसी लड़की को छेड़ रहा है और अगर दोस्त आपस में बात करते हुए एक -दूसरे को आँख मार रहे हो तो इसका अर्थ है की वे किसी तीसरे से किसी दूसरी बात को मजाक में ले रहे हैं ,माँ द्वारा अपने बच्चे को दूर से थप्पड़ दिखाने का अर्थ है की वो माँ उसकी पिटाई करेगी और किसी बात पर गुस्सा है ,एक उंगली को अपने कान के ऊपर थोड़ा सा लाकर फ़िर उंगली को घुमाने का अर्थ है की दूसरा व्यक्ति जो है वो पागल है , रुपये पैसे के लिए अंगूठे और पहली उंगली को , बार घूमाने का अर्थ है की व्यक्ति पैसों के बारे में बात कर रहा है इसी तरह भूख लगने पर हम अपने हाथ की पाँचो उंगलियों को मिलाकर उसे मुँह के पास ले जाते है, कहीं से बदबू आने पर रुमाल को मुँह पर रखते है आदि आदि और न जाने इस तरह के ही कितने संकेतो का इस्तेमाल हम अपने रोज़मर्रा के भावों और विचारों को बताने के लिए करते हैं पर हम फ़िर भी इस देह भाषा के बारे में कभी भी नही सोचते जबकि हमें अपनी भाषा में ही इसे भी जगह देनी चाहिए माना की ये भाषा का सीमित रूप है पर फ़िर भी जब हम समाज और भाषा के सम्बन्ध को देखते हुए भाषा की बात करते है तो जहाँ तक मुझे लगता है हम इस देह भाषा को अनदेखा नही कर सकते l

देह भाषा भी मूलत: भाषा ही हैl




हम जब कभी भाषा की बात करते हैं तो क्या कभी देह भाषा के बारे में भी सोंचते हैं ? अगर हम linguistic में देखे तो वहाँ भाषा को विभिन्न मुखाव्यवों द्वारा उच्चरित भाषा ही कहा जाता है और अगर आप लोगों से पूछे तो वे कहेंगे कि भाई साहब भाषा तो वही है जो मुँह से बोली जाती है और बहुत से बड़े विद्वानों ने भी भाषा के बारे में जो खोज किए हैं वो भी भाषा कि सरंचना के आधार पर ही किए हैं या फिर उसे समाज के साथ जोड़ कर ही देखा है (सस्यूर , ब्लूम फ़ील्ड , चोमस्की ,फ़र्ग्युसन ,लेबाव ,रविन्द्र नाथ श्रीवास्तव ,भोलानाथ तिवारी ) पर उन्होंने कही भी भाषा को देह के साथ जोड़ कर नहीं देखा जबकि अगर ध्यान से देखा जाए तो हमारी भाषा की शुरुआत ही संकेतों और देह भाषा ही से हुई है पहले समय में जब हमारे पास भाषा नही थी तब हम संकेतो, इशारों,शरीर के विभिन्न अंगों , चिन्हों के माध्यम से ही अपनी बात दूसरों तक पहुचाते थे पर धीरे- धीरे, जैसे- जैसे भाषा का विकास होता गया वैसे- वैसे हम सिर्फ़ मुँह से बोलने वाली भाषा तक ही सीमित रह गए और यहाँ तक की सारी research वगैरह भी बाद में इसी पर सीमित हो गयी और हम ने अपनी भाषा का विकास जहाँ से शुरू किया था हम उसे भूल ही गए पर अगर हम गौर करे तो हम कम से कम अपनी आधी बातें तो संकेतों ,इशारो ,चिन्हों आदि से ही कहते हैं जैसे मुझे नही पता के लिए कंधे उचकाना, उंगली मुँह पर रखने का अर्थ है चुप रहना ,हाथ को घूमा के पूछने का अर्थ है क्या हुआ , ताली बजाने का अर्थ है किसी काम का अच्छा करने पर उसकी तारीफ़ करना ,किसी का हाथ छूना अब देखिये हाथ को छूने के भी , अर्थ निकलते है जैसे किसी माँ का अपने बेटे को छूने में ममता झलकती है ,किसी प्रेमिका द्वारा अपने प्रेमी को छूने से प्यार का पता चलता है इसी तरह किसी लड़के का किसी लड़की को आँख मारने या सीटी बजाने का अर्थ है की वह किसी लड़की को छेड़ रहा है और अगर दोस्त आपस में बात करते हुए एक -दूसरे को आँख मार रहे हो तो इसका अर्थ है की वे किसी तीसरे से किसी दूसरी बात को मजाक में ले रहे हैं ,माँ द्वारा अपने बच्चे को दूर से थप्पड़ दिखाने का अर्थ है की वो माँ उसकी पिटाई करेगी और किसी बात पर गुस्सा है ,एक उंगली को अपने कान के ऊपर थोड़ा सा लाकर फ़िर उंगली को घुमाने का अर्थ है की दूसरा व्यक्ति जो है वो पागल है , रुपये पैसे के लिए अंगूठे और पहली उंगली को , बार घूमाने का अर्थ है की व्यक्ति पैसों के बारे में बात कर रहा है इसी तरह भूख लगने पर हम अपने हाथ की पाँचो उंगलियों को मिलाकर उसे मुँह के पास ले जाते है, कहीं से बदबू आने पर रुमाल को मुँह पर रखते है आदि आदि और न जाने इस तरह के ही कितने संकेतो का इस्तेमाल हम अपने रोज़मर्रा के भावों और विचारों को बताने के लिए करते हैं पर हम फ़िर भी इस देह भाषा के बारे में कभी भी नही सोचते जबकि हमें अपनी भाषा में ही इसे भी जगह देनी चाहिए माना की ये भाषा का सीमित रूप है पर फ़िर भी जब हम समाज और भाषा के सम्बन्ध को देखते हुए भाषा की बात करते है तो जहाँ तक मुझे लगता है हम इस देह भाषा को अनदेखा नही कर सकते l

शनिवार, 8 मई 2010

प्रति 54 मिनट


कल अपने पीएच.डी. से जुड़े शोध कार्य के सिलसिले के लिए एक स्कूल जाना पड़ा। मैंने कुछ students और teachers से बात की और अब दूसरे teacher का इंटरव्यू ही लेने जा रही थी की मुझसे कहा गया कि आप अपना काम कल कर लेना आज हमारी urgent meeting है । मुझे ऐसा सुनकर कुछ अजीब लगा क्योंकि कल ही तो मै स्कूल की प्रिंसिपल से बात करके गयी थी और उन्होंने भी कहा था की आप जब चाहे जितनी देर चाहे स्कूल में आ सकती हैं और अपना काम पूरा कर सकती हैं और इसमें हम आपका पूरा सहयोग देंगे। फिर अचानक से मुझे कल आने को क्यों कहा गया ? मै class से बाहर आई तो मुझे कुछ गड़बड़ लगी । मैंने एक teacher से पूछा की क्या हुआ आपकी कौन सी meeting है तब उन्होंने कहा की पता नहीं कल तक तो किसी meeting के बारे में नहीं बताया गया था । सारी teachers अपनी -अपनी class से बाहर निकल कर office में जाने लगी तब मैंने जिस class के बाहर भीड़ लगी थी उस class की एक लड़की से पूछा कि क्या हुआ स्कूल में क्या बात हो गयी तब उसने बताया कि हमारी class की एक लड़की का रेप हो गया है मै सुनकर पहले तो सकपका गयी फिर पूछा की कैसे ? तो उसने बताया कि उसके (लड़की के ) पड़ोस में रहने वाला एक आदमी स्कूल आया था उसने कहा की चल मै भी घर जा रहा हूँ तुझे छोड़ दूंगा वो उसे भाई कहती थी इसलिए वो उसके साथ चली गयी । पर उसने कही रास्ते में ले जाकर उसका रेप कर दिया । उसकी ये बात सुनकर मुझे अखबारों में आने वाली बलात्कार की घटनाएं याद आने लगी। आज रिश्तों की अहमियत ही नहीं रह गयी है सोतेला बाप बेटी से बलात्कार करता है चचेरा ,ममेरा ,मौसेरा भाई अपनी ही बहनों के साथ बलात्कार करते हैं यहाँ तक कि पुलिस वाले तक ....... आखिर विश्वास किया जाए तो किस पर ?

हाल ही में मैंने एक उपन्नयास " 54 मिनट " (महाशेवता देवी ) पढ़ा जिसमे यही समस्या थी । उसमे वकील उषा पटेल बताती हैं कि " इस देश में प्रति 54 मिनट में एक स्त्री का बलात्कार होता है , दो घन्टे में दहेज़ के लिए एक वधु की ह्त्या होती है , प्रति 54 मिनट में एक स्त्री का अपहरण होता है , प्रति 26 मिनट में पुरुषों द्वारा तैयार की गयी न्याय व्यवस्था के रहते हुए किस स्त्री को न्याय मिलेगा ? ''

बलात्कार एक ऐसी सज़ा है जो लड़की को बिना किसी जुर्म के पूरी ज़िन्दगी भुगतनी पड़ती है । उसका जीवन नरक हो जाता है ।यहाँ तक की कभी कभी तो वह आत्महत्या भी कर लेती है । वह सहज नहीं हो पाती। ( और होना भी चाहे तो समाज उसे होने नहीं देता) लोग उसके चरित्र पर उंगलियाँ उठाते हैं, ताने कसते है, यहाँ तक की उसके सबसे करीब उसके अपने उसका साथ तक नहीं देते । इससे सिर्फ लड़की का जीवन ही बर्बाद नहीं होता बल्कि उसका घर भी बर्बाद हो जाता है। प्रति 54 मिनट की नायिका (जिसका बलात्कार होता है) का पिता कहता है "यह मर्डर नहीं तो और क्या है ?मेरा जीवन , इज्ज़त सबका खून हो गया । मेरी बीवी ....मेरी बीवी यह हत्या तो है ही । मेरी बेटी कभी स्वाभाविक जीवन जी सकेगी ? इतने जीवन नष्ट हो गए । यह हत्या नहीं तो और क्या है ?''

मुझे
लगता है कि हमें अपनी हिफाज़त के लिए सिर्फ पुलिस या क़ानून तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि हमें खुद भी इसके लिए कुछ करना चाहिए जैसे आजकल तो फ्री कैंप भी लगाए जाते हैं जिसमे लड़कियों को अपनी हिफाज़त करने के तरीके सिखाए जाते है हमें उमे जाना चाहिए । दूसरी बात ये है कि हमारे माता -पिता को भी अपनी सोंच बदलनी चाहिए और हमें इन कैम्पों में जाने का मौका देना चाहिए और हमारा पूरा सहयोग करना चाहिए। तीसरी बात ये है कि न्यायालयों को भी इसमें पाए जाने वाले दोषी को कड़ी सजा देनी चाहिए जिससे की लोगों में इस तरह की हरकत करने से पहले परिणाम का डर हो ।