रविवार, 28 फ़रवरी 2010

होली की हार्दिक शुभकामनाएं

आप सभी को "होली" की बहुत- बहुत शुभकामनाएँ


शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

होली के रंग "ब्रज कला केंद्र" के संग



कल पहली बार "ब्रज कला केंद्र" जाने का मौका मिला। वहाँ हर साल होली के उपलक्ष्य में कार्यक्रम किया जाता है। 1962 में 'ब्रज कला केंद्र ' की स्थापना हुई थी और तब से लेकर आज तक यहाँ ब्रज की कला और संस्कृति को आगे बढ़ाने का कार्य किया जाता है । इस बार भी "हो हो लाल होरी है " के नाम से वहाँ होली उत्सव मनाया गया । अन्दर घुसते ही देखा की शहनाई की मोहक धुन बज रही थीं। ये धुनें ब्रज के वे लोक गीत थे जो लोक धुनों के माध्यम से हमारे सामने प्रस्तुत किये जा रहे थे। कार्यक्रम प्रारंभ हुआ सबसे पहले खान- पान किया गया। गुलाबजामुन ,टिक्की, दहीभल्ले, पूरी- सब्जी, गोलगप्पे, ठंडाई सभी में मथुरा का स्वाद था। इनमे से कुछ चीज़ें तो मथुरा से ही बनी- बनाई आई थीं जबकि कुछ चीज़े बनाने के लिए सामान मथुरा से मंगाया गया और वे वही पर ही तैयार की गयीं । खान- पान से निपटने के बाद कार्यक्रम को आगे बढाया गया। शुरुआत कृष्ण वंदना से हुई। तत्पश्चात एक गीत मथुरा से आई हुई कुछ लड़कियों द्वारा प्रस्तुत किया गया उसके बाद मथुरा से ही आई हुई team ने कृष्ण के 9 अवतारों की नाट्य प्रस्तुति की नाट्य प्रस्तुति में कृष्ण के एक -एक करके सभी अवतार गायन -दृश्य माध्यम से दिखाए गए और अंत में रास- लीला के सुन्दर दृश्य प्रस्तुत किये गए। रास लीला देखने लायक तथा मन को हरने वाली थी। रासलीला देख कर सभी का मन इतना तन्मय हुआ कि कुछ लोग तो स्टेज पर जाकर कृष्णमय ही हो गए ब्रज भाषा के प्रयोग ने कार्यक्रम की शोभा और अधिक बढा दी।

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

हिंदी को ताक़त की भाषा बनाने से हमें परहेज़ करना चाहिए

पुस्तक मेले में 'हिंदी क्या है?' विषय पर चर्चा-परिचर्चा की गयी। पंकज पचौरी ( n.d.t.v.) ने इस परिचर्चा का संचालन किया। सुधीश पचौरी , अनामिका , अशोक चक्रधर,मीराकांत,ओम थानवी , मुकेश गर्ग,आदि इस चर्चा के वक्ता थे । विषय के अनुसार हिंदी भाषा को लेकर काफी चर्चा हुई । पंकज पचौरी ने सवाल पूछते हुए चर्चा की शुरुआत की। उनका सवाल था कि 18करोड़ लोग हिंदी बोलते है , हिंदी फिल्मो से हमें इतना मुनाफ़ा ११ हज़ार करोड़ रूपये होता है अभी ३ idiots को ३०० करोड़ का मुनाफ़ा हुआ है internet की दुनिया भी अब हिंदीमय हो रही है तब भी क्या कारण है कि हिंदी को वह जगह नहीं मिल पा रही है जो उसे मिलनी चाहिए? प्रो. सुधीश पचौरी ने कहा कि अगर हिंदी को आगे बढ़ाना है तो उसे उपभोग की भाषा बनाना होगा केवल हिंदी को पढ़ लेने या भाषा तक सीमित रखने से हिंदी का विकास आज संभव नहीं है अब तक हिंदी उपयोग की भाषा थी अब हिंदी उपभोग की भाषा बनती जा रही है । डॉ. मुकेश गर्ग ने कहा कि हिंदी के आगे ना बढ़ पाने का कारण हमारी शिक्षा पद्धति है क्योंकि जब हम अपने बच्चो को हिंदी पढाएंगे ही नहीं तो वे उसे सीखेंगे कहाँ से ? ओम थानवी ने आज की हिंदी को देखते हुए चिंता व्यक्त की उनका मानना था कि आज हिंदी का जो (बिगड़ा ) रूप चल रहा है उसके जिम्मेदार कुछ हद तक तो मीडिया भी है उनका मानना है कि जो शब्द हम आज टी.वी . या रेडियो पर सुनते है उसने हिंदी को बिगाड़ दिया है आज मै रेडियो पर ' बाप' शब्द सुनता हूँ तो हिंदी का ये रूप हिंदी को बिगाड़ रहा है अशोक चक्रधर ने कहा कि हिंदी का भला कोई ऊपर से नहीं कर सकता हिंदी का भला होगा तो वह नीचे से होगा उनका कहना था कि हिंदी में भी अब आप इन्टरनेट , कम्प्यूटर पर काम कर सकते है, हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा बनती जा रही है हिंदी आज 130 देशो में पढाई जाती है। मीराकान्त ने कहा की भाषा तो बहता नीर है ये जब बहती है तो सबको अपने साथ ले जाती है उन्होंने कहा की भाषा को आजकल बाज़ार तय करता है । इस तरह यह चर्चा चलती रही और आगे भी इसी तरह चलती भी रहेंगी पर इन परिचर्चाओं को करने का फायदा तभी है जब हम इनमे शामिल हों, कुछ मुद्दे उठा सके और अपनी भाषा के लिए कुछ कर सकें। पर जो बात मुझे सबसे जानदार लगी वो ये कि भाषा का विकास आप डंडे के जोर पर नहीं बल्कि उसे सहभागिता, ज्ञान और जैसाकि सुधीश पचौरी ने कहा कि उसे उपभोग की भाषा बनाकर ही किया जा सकता है, ताक़त की भाषा बनाकर नहीं, ताक़त से हम राज ठाकरे के मानुषों को ही उत्पन्न करेंगे इसलिए हिंदी को ताक़त की भाषा बनाने से हमें परहेज़ करना चाहिए।