बुधवार, 15 सितंबर 2010

प्रतिमा

ब्रह्मा की उत्पत्ति से
ओम का नाद फूटा
जैसे शिव की कल्याणी से संस्कार उठा
जहाँ प्रकट हो उसकी लीला
वहीँ आकाशा गंगा का रंग नीला
पाषाण जो धारा से हटा
छटा उससे व्यर्थ जो थी प्रतिभा
बनी फलस्वरूप उसके 'प्रतिमा'
जगत में उन्नत , अद्वितीय , अतुलनीय
तुम ही हो प्यारी मेरी माँ

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर उपमाएँ है माँ के लिये लेकिन माँ इनसे भी ऊपर होती है ।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह। ये तुमने लिखी है। कमाल का लिखती हो तुम तो । जारी रखो , लिखती रहो,शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं